टैरिफ अमेरिका का भारत पर असर: जानें किस सेक्टर पर क्या प्रभाव?

हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत पर पारस्परिक कर (Reciprocal Tariffs) लगाने की घोषणा ने दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में एक नई हलचल पैदा कर दी है। इस कदम को “मेक अमरिका ग्रेट अगेन” नीति के तहत देखा जा रहा है, जिसका उद्देश्य अमेरिकी हितों की रक्षा करना और व्यापार घाटे को कम करना है।

लेकिन इस फैसले का भारत के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों पर मिला-जुला असर पड़ने की संभावना है। कुछ क्षेत्रों को जहां चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, वहीं कुछ अन्य के लिए अप्रत्याशित अवसर भी बन सकते हैं।

आइए, विस्तार से समझते हैं कि यह नया टैरिफ ढांचा भारतीय अर्थव्यवस्था के किन हिस्सों को कैसे प्रभावित करेगा।

पारस्परिक टैरिफ (Reciprocal Tariffs) और अमेरिकी रणनीति

पारस्परिक टैरिफ का सीधा मतलब है – ‘जैसे को तैसा’। जब अमेरिका को लगता है कि कोई व्यापारिक भागीदार देश उसके उत्पादों पर अत्यधिक शुल्क लगा रहा है, तो वह जवाबी कार्रवाई के तौर पर उस देश से आने वाले उत्पादों पर भी वैसा ही या संतुलित टैरिफ लगा देता है। अमेरिका का तर्क है कि भारत कई अमेरिकी वस्तुओं (जैसे मोटरसाइकिल, कुछ कृषि उत्पाद) पर उच्च टैरिफ लगाता है, जो अमेरिकी कंपनियों के लिए “अनुचित” है। अप्रैल 2025 में घोषित यह कदम इसी पृष्ठभूमि में उठाया गया है।

विभिन्न भारतीय क्षेत्रों पर टैरिफ अमेरिका(Reciprocal Tariffs) का असर

  • इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर: चिंता का विषय यह क्षेत्र टैरिफ से सबसे ज़्यादा प्रभावित हो सकता है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात का लगभग 32% हिस्सा अकेले अमेरिका को गया था। नए टैरिफ से भारतीय इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों की लागत अमेरिकी बाजार में बढ़ जाएगी, जिससे मांग में कमी आ सकती है और भारतीय निर्यातकों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।

  • टेक्सटाइल और परिधान: प्रतिस्पर्धा में बढ़त की संभावना? वित्त वर्ष 2024 में भारत ने अमेरिका को 9.6 बिलियन डॉलर के टेक्सटाइल और परिधान का निर्यात किया, जो इस श्रेणी के कुल निर्यात का लगभग 28% था। हालांकि भारत का बाजार हिस्सा (6%) चीन (21%) और वियतनाम (19%) की तुलना में कम है, लेकिन टैरिफ नीति भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है। अमेरिका ने चीन से आयात पर मौजूदा शुल्क के अलावा 34% और वियतनाम पर 46% अतिरिक्त पारस्परिक टैरिफ लगाया है। इससे भारतीय टेक्सटाइल उत्पाद अमेरिकी बाजार में चीन और वियतनाम के मुकाबले अधिक प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं। इस संदर्भ में वेलस्पन, ट्राइडेंट, अरविंद लिमिटेड, केपीआर मिल, वर्धमान और पेज इंडस्ट्रीज जैसे शेयरों पर नजर रखी जा सकती है।

  • ऑटो पार्ट्स और ट्रक निर्यातक: सीधी चोट अमेरिकी बाजार पर निर्भर ट्रक और ऑटो कंपोनेंट निर्यातकों को इन टैरिफ से सीधा नुकसान होने की आशंका है। उदाहरण के लिए, भारत फोर्ज अपनी आय का लगभग 20% अमेरिका से प्राप्त करती है। इसी तरह, संवर्धन मदरसन (18.6% राजस्व अमेरिका से) और सुप्राजित इंजीनियरिंग (21.78% राजस्व अमेरिका से) जैसी कंपनियों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

  • धातु (कॉपर और एल्युमिनियम): अप्रत्याशित लाभ? ट्रंप टैरिफ की प्रतिक्रिया में वैश्विक तांबे की कीमतों में आई 4% की गिरावट भारत के लिए फायदेमंद हो सकती है। चूंकि 2018 में तूतीकोरिन स्मेल्टर बंद होने के बाद भारत तांबे का शुद्ध आयातक बन गया है, इसलिए कम कीमतें वायर और केबल निर्माताओं के साथ-साथ हिंडाल्को और वेदांता जैसी एल्युमिनियम उत्पादक कंपनियों को लाभ पहुंचा सकती हैं।

  • रत्न और आभूषण (विशेषकर हीरे): बड़ा झटका कटे और पॉलिश किए हुए हीरों के निर्यातकों पर टैरिफ अमेरिका का गंभीर असर पड़ सकता है। वर्तमान में इन पर अमेरिका में कोई शुल्क नहीं लगता, लेकिन नई घोषणा के बाद शुल्क 26% तक बढ़ जाएगा। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत से अमेरिका को होने वाले कुल रत्न और आभूषण निर्यात का 57% हिस्सा इसी श्रेणी में आता है।

  • अन्य क्षेत्र:
    • निर्माण: लार्सन एंड टुब्रो जैसी कंपनियों ने वित्त वर्ष 2024 में अपने राजस्व का 14% अमेरिका से अर्जित किया, उन पर भी असर देखा जा सकता है।
    • Apple: चूंकि चीन से आयात पर शुल्क (20% मौजूदा + 34% पारस्परिक) भारत के मुकाबले काफी ज़्यादा है, इसलिए Apple के लिए भारत से असेंबल किए गए फोन अमेरिका भेजना अभी भी आकर्षक बना रह सकता है।
    • सोना: बुलियन को इन टैरिफ से छूट दी गई है, लेकिन अमेरिकी मंदी की आशंका से सोने की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई हैं। यह मुथूट फाइनेंस और मणप्पुरम फाइनेंस जैसी गोल्ड लोन कंपनियों के लिए अच्छा है, लेकिन टाइटन, पीसी ज्वेलर और राजेश एक्सपोर्ट्स जैसे ज्वैलरी निर्माताओं के लिए बुरा।

निष्कर्ष

अमेरिका का टैरिफ अमेरिका फैसला भारत के लिए एक जटिल स्थिति प्रस्तुत करता है। जहां इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटो कंपोनेंट्स और हीरा उद्योग के सामने बड़ी चुनौतियां हैं, वहीं टेक्सटाइल और कुछ मेटल आधारित उद्योगों के लिए नए अवसर खुल सकते हैं। भारत को सावधानीपूर्वक अपनी रणनीति बनानी होगी और कूटनीतिक माध्यमों का उपयोग करके अपने हितों की रक्षा करनी होगी। यह कदम वैश्विक व्यापार समीकरणों में बदलाव का संकेत है, जिसके लिए भारत को तैयार रहना होगा।

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